क्या बचेगा भविष्य में पानी?

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‘हवा और पानी’ हमारे जीने के लिए क्या ये दो चीजें सबसे ज्यादा जरूरी नहीं हैं? जरा सोच कर देखे तो सबसे ज्यादा क्षति भी हम इन्ही दोनों को पहुंचाते हैं. जब मन हुआ नल खुला छोड़ कर काम में लग गए कहीं कोई कचरा नजर आया उठा कर नदी में फेंक दिया या जला दिया. एक तरह से हवा और पानी को हमने डंपिंग ग्राउंड बना रखा है. कभी आस्था के नाम पर तो कभी मजबूरी का नाम देकर हम पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करते रहते हैं. जब अति हो जाती है तो फिर इसकी सुरक्षा और सफाई की नाकाम कोशिशें शुरू हो जाती हैं. लगातार आंकड़ों के द्वारा चेतावनी दी जाती रही है कि कुछ सालों में पानी की भारी किल्लत का सामना एक बड़े भूभाग को करना पड़ेगा लेकिन फिर भी लोग तब तक नहीं चेतते हैं जब तक कि यह मुसीबत खुद उन पर न आ गिरे. दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन में पानी पूरी तरह खत्म हो चुका है. वहां के लोग शहर के पास स्थित जिस पानी के स्त्रोत के ऊपर निर्भर थे हाल ही में वह भी सूख गया है जिसका परिणाम वहां पानी की भारी किल्लत के रूप में सामने आ रहा है. पिछले दिनों जो क्रिकेट मैच वहां खेला गया उसपर भी इसका प्रभाव नजर आया. प्लेयर्स के लाख नाराजगी जताने के बावजूद उन्हें बाथरूम में केवल 2 मिनट का ही वक्त दिया जाता था. इससे ये तो साबित हो जाता है कि आने वाले समय में जेब में चाहे लाखों रूपये हों पीने को एक बूँद पानी की कीमत चुकाने के लिए वो भी कम ही पड़ने वाले हैं. ज्यादा समय नहीं हुआ जब दिल्ली जैसे शहर से पानी के बटवारे में हुए झगडे में एक व्यक्ति की जान ले ली गयी. आने वाले समय में यह स्थिति हर छोटे बड़े शहर की हो जाएगी जब लोगों की जान पानी से ज्यादा सस्ती हो जाएगी. जरूरत खुद को इन प्राकृतिक स्त्रोतों की सुरक्षा के साथ ही इनकी किल्लत के साथ जीने के लिए भी तैयार करने की है.

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