हाइपरसॉनिक विमानों की राह पर चीन, बीजिंग से दिल्ली आने में लगेगा मात्र 1 घंटा

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Science source

बीजिंग से नई दिल्ली का सफ़र तकरीबन आठ घंटे का है, लेकिन चीन कुछ ऐसा करने जा रहा है जिससे ये दूरी बहुत कम समय में पूरी हो जाएगी. चीन ने एक हाइपरसोनिक विमान का डिज़ाइन पेश किया है. उनका कहना है कि यह एक बहुत बड़ा कदम है. इसकी तेज़ रफ़्तार को लेकर कोई शक़ नहीं है और ऐसा मुमकिन है कि बीजिंग से नई दिल्ली तक का सफ़र उतना ही रह जाएगा, जितना दिल्ली से देहरादून. हाइपरसोनिक उड़ानों को लेकर शोध कोई नई बात नहीं है, लेकिन आमतौर पर इसके केंद्र में सैन्य प्रयोग ही रहते हैं क्योंकि वहां पर शोध के लिए अधिक पैसा होता है और दबाव कम होता है. यात्री उड़ानों के लिए क्या कोई विमान ध्वनि की गति से पांच गुना तेज़ उड़ सकता है और दो घंटे में प्रशांत महासागर का चक्कर काट कर आ सकता है?

तेज़, उससे तेज़ और सबसे तेज़

सुपरसोनिक विमानों की रफ़्तार मापने का पैमाना अमूमन ध्वनि की गति या मैक वन रखा जाता है. ये तकरीबन 1235 किलोमीटर प्रति घंटा है.
सबसोनिक – वो रफ़्तार जो ध्वनि की गति से कम हो जैसे यात्री विमानों की स्पीड.
सुपरसोनिक – मैक वन से तेज़ और मैक फ़ाइव तक (ध्वनि की स्पीड से पांच गुना ज़्यादा) जैसे कॉनकॉर्ड विमान यूरोप और अमरीका के बीच 1976 से 2003 तक उड़ान भरता रहा.
हाइपरसोनिक – वो रफ़्तार जो मैक फ़ाइव से ज़्यादा तेज़ हो. इस समय कुछ गाड़ियों पर इसके प्रयोग चल रहे हैं.
चीन इस समय ऐसे ही हाइपरसोनिक विमान पर फ़ोकस कर रहा है. चाइनीज़ एकेडमी ऑफ़ साइंसेज़ की एक टीम इस पर काम कर रही है.

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हाइपरसोनिक फ़्लाइट


डिजाइन के लिहाज से हाइपरसोनिक फ़्लाइट को कुछ ऐसी चीज़ की ज़रूरत है जिससे उसकी राह में अवरोध कम किया जा सके. विमान जितनी तेज़ रफ़्तार वाला होगा, अवरोध उतना बड़ा मुद्दा होगा. यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेलबर्न के निकोलस हचिंस कहते हैं, “रफ़्तार जितनी गुना बढ़ती है, अवरोध उसी अनुपात में बढ़ता है. अगर आप स्पीड दोगुनी बढ़ाएंगे तो अवरोध चार गुनी बढ़ जाएगी.”
लेकिन सवाल उठता है कि चीन ने जो डिजाइन पेश किया है, उसमें नया क्या है? दरअसल चीन ने अपने डिजाइन में डैनों की एक अतिरिक्त लेयर जोड़ा है. ये डैने सामान्य तौर पर लगने वाले डैनों के ऊपर लगाए गए हैं. इसका मक़सद अवरोध को कम करना है. दिखने में ये कुछ-कुछ दो पंखों वाले विमान जैसा लगता है. इस समय चीन ने अपने मॉडल का छोटे पैमाने पर प्रयोग किया है. इसकी टेस्टिंग एक विंड टनेल में की गई है. इसलिए चीन के इस सपने को हकीकत की ज़मीन पर उतरने में फिलहाल वक्त लगेगा. जानकारों का कहना है कि भले ही चीन अपने डिजाइन में अवरोध की बाधा पार कर ले लेकिन दूसरी चुनौतियां फिर भी बरकरार रहेंगी.

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