भारत का लाल जिसने पाकिस्तान को अपने पैरों में ला खड़ा किया

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पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की आज 52वीं पुण्यतिथि है. शास्त्री जी का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी में दो अक्टूबर, 1904 को शारदा प्रसाद और रामदुलारी देवी के घर हुआ था. उन्होंने 11 जनवरी, 1966 को उज़्बेकिस्तान के ताशकंद में अंतिम सांस ली थी. उसी दिन उन्होंने ताशकंद घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए थे. वह पहले व्यक्ति थे, जिन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से नवाजा गया था. आइए जानते हैं लालबहादुर शास्त्री के बारे में कुछ ऐसी बातें जिनको बहुत कम लोग जानते हैं…

शास्त्री जी एक सीधे-सादे व्यक्ति थे और उनकी छवि साफ थीं और इसी कारण से उनको 1964 में नेहरू जी के निधन के बाद भारत का दूसरा प्रधानमंत्री बनाया गया. अगर देखा जाय तो उनका प्रधानमंत्री का कार्यकाल काफी मुश्किल भरा रहा था. उस समय पूंजीपति लोग देश में शासन करना चाहते थे और दुश्मन देश पर हमले की तैयारी में थे. सन 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर शाम के समय हमले करना शुरू कर दिया था.

तब शास्त्री जी ने सेना के तीनो अंगो को साफ- साफ कहा था ‘अब समय आ गया है, आप अपने देश की रक्षा कीजिये.’ युद्ध में पाकिस्तान की हार हुई थी तब भारतीय सेना पाकिस्तान के लाहौर हवाई अड्डे तक पहुँच गयी थी. लेकिन रूस और अमेरिका ने शास्त्री जी को युद्ध विराम करने का अनुरोध किया और उन्हें रूस बुलाया. उस समय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान दोनों नेता रूस गये थे और युद्ध विराम के समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ ही समय बाद शास्त्री जी ताशकंद में मृत पाये गये थे.

नेहरू के मुकाबले शास्त्री जी ने देश को एक अलग पहचान दिलाई लेकिन शास्त्री जी ने मात्र 18 महीनों का थोड़ा सा कार्यकाल किया था, जिसके बाद उनकी रहस्यमय तरीके से मौत हो गयी थी. शास्त्री जी ने एक नारा दिया था ‘जय जवान – जय किसान.’ इस नारे ने देश की जनता का मनोबल बढ़ाया और उन्हें एकजुट किया. शास्त्री जी को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया था.

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शास्त्री जी की मौत और रहस्य

भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत रूस के ताशकंद शहर में हुई थी. एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घंटे के बाद शास्त्री जी की अचानक रहस्यमय तरीके से मौत हो गयी थीं. उनके पार्थिव शरीर को भारत लाया गया और दिल्ली के यमुना नदी के तट पर अंतिम संस्कार किया गया. इस स्थल को विजय घाट नाम दिया गया.

उनकी मौत के बाद कुछ समय तक गुलजारी लाल नंदा को कार्यकारी प्रधानमंत्री और बाद मे इंदिरा गाँधी को भारत का प्रधानमंत्री बनाया गया. शास्त्री जी की मौत हार्ट अटैक से हुई या किसी दूसरे कारण से यह रूस और भारत के डॉक्टर और खुफिया एंजेंसियां मिल कर भी पता नहीं लगा सके. या शायद इस सच को बाहर ही नहीं आने दिया गया. 1966 से वर्तमान तक शास्त्री जी की मौत एक रहस्य ही बना हुआ है.

सादगी पसंद व्यक्तित्व था शास्त्री जी का

बात तब की है, जब शास्त्रीजी इस देश के प्रधानमंत्री के पद को सुशोभित कर रहे थे। एक दिन वे एक कपड़े की मिल देखने के लिए गए। उनके साथ मिल का मालिक, उच्च अधिकारी व अन्य विशिष्ट लोग भी थे।
मिल देखने के बाद शास्त्रीजी मिल के गोदाम में पहुंचे तो उन्होंने साड़ियां दिखलाने को कहा। मिल मालिक व अधिकारियों ने एक से एक खूबसूरत साड़ियां उनके सामने फैला दीं। शास्त्रीजी ने साड़ियां देखकर कहा- ‘साड़ियां तो बहुत अच्छी हैं, क्या मूल्य है इनका?’
‘जी, यह साड़ी 800 रुपए की है और यह वाली साड़ी 1 हजार रुपए की है।’ मिल मालिक ने बताया।
> ‘ये बहुत अधिक दाम की हैं। मुझे कम मूल्य की साड़ियां दिखलाइए,’ शास्त्रीजी ने कहा। यहां स्मरणीय है कि यह घटना 1965 की है, तब 1 हजार रुपए की कीमत बहुत अधिक थी।
> ‘जी, यह देखिए। यह साड़ी 500 रुपए की है और यह 400 रुपए की’ मिल मालिक ने दूसरी साड़ियां दिखलाते हुए कहा।
‘अरे भाई, यह भी बहुत कीमती हैं। मुझ जैसे गरीब के लिए कम मूल्य की साड़ियां दिखलाइए, जिन्हें मैं खरीद सकूं।’ शास्त्रीजी बोले।

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‘वाह सरकार, आप तो हमारे प्रधानमंत्री हैं, गरीब कैसे? हम तो आपको ये साड़ियां भेंट कर रहे हैं।’ मिल मालिक कहने लगा।

‘नहीं भाई, मैं भेंट में नहीं लूंगा’, शास्त्रीजी स्पष्ट बोले।

‘क्यों साहब? हमें यह अधिकार है कि हम अपने प्रधानमंत्री को भेंट दें’, मिल मालिक अधिकार जताता हुआ कहने लगा।

‘हां, मैं प्रधानमंत्री हूं’, शास्त्रीजी ने बड़ी शांति से जवाब दिया- ‘पर इसका अर्थ यह तो नहीं कि जो चीजें मैं खरीद नहीं सकता, वह भेंट में लेकर अपनी पत्नी को पहनाऊं। भाई, मैं प्रधानमंत्री हूं पर हूं तो गरीब ही। आप मुझे सस्ते दाम की साड़ियां ही दिखलाएं। मैं तो अपनी हैसियत की साड़ियां ही खरीदना चाहता हूं।’

मिल मालिक की सारी अनुनय-विनय बेकार गई। देश के प्रधानमंत्री ने कम मूल्य की साड़ियां ही दाम देकर अपने परिवार के लिए खरीदीं। ऐसे महान थे शास्त्रीजी, लालच जिन्हें छू तक नहीं सका था।

पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था. उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे. जब लाल बहादुर शास्त्री केवल डेढ़ वर्ष के थे तभी उनके पिता का निधन हो गया.

बचपन से ही लाल बहादुर शास्त्री को काफी गरीबी और मुश्किलों का सामना करना पड़ा. कई जगह इस बात का भी जिक्र किया गया है कि पैसे नहीं होने की वजह से लाल बहादुर शास्त्री तैरकर नदी पार कर स्कूल जाया करते थे. हालांकि इसको लेकर कुछ पुख्ता तथ्यों में दूसरी तरह का दावा किया गया है.

बचपन में दोस्तों के साथ शास्त्री जी गंगा नदी के पार मेला देखने गए थे. वापस लौटते के समय उनके पास नाववाले को देने के लिए पैसे नहीं थे और दोस्तों से पैसे मांगना उन्होंने ठीक नहीं समझा. बताया जाता है कि उस समय गंगा नदी भी पूरे उफान पर थी. उन्होंने दोस्तों को नाव से जाने के लिए कह दिया और बाद में खुद नदी पार करके आए.

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आर्थिक तंगी की वजह से शास्त्री जी को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था. उनको वाराणसी भेज दिया गया. पढ़ाई करने के लिए वह कई मीलों पैदल चलकर स्कूल जाते थे.

शास्त्री जी ने अपनी शादी में दहजे में एक चरखा और कुछ कपड़े लिए थे.

शास्त्री जी जात-पात का हमेशा विरोध करते रहे. यहां तक कि उन्होंने कभी अपने नाम के आगे भी अपनी जाति का उल्लेख नहीं किया. शास्त्री की उपाधि उनको काशी विश्वविद्यालय से मिली थी.

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