मैं…
मैं …मैं राहगीर हूँ, तो राह भी मैं ही हूँ. मैं श्रमिक हूँ, तो श्रम भी मैं ही हूँ. मैं
Read moreहर एक बात पर इतना क्यों अकड़ रहा है वो, टूटा हुआ है अंदर से ज़र्रा-ज़र्रा झड़ रहा है वो।
Read moreजब से तुम से आँखे चार हुई है, ज़िदगी तब से गुलज़ार हुई है। तुझ से मिलकर जीना सीखा है,
Read moreमैं ही हूँ तिरंगा, हाँ! कहा ना मैं ही हूँ तिरंगा,! लेकिन इतने दिनो तक कहाँ था ? क्यों मैं
Read moreअगर इंसान की पूँछ होती, तो क्या अजब ये दुनिया होती, पूंछों मूंछों के चक्कर में,सारी दुनिया उलझी होती। अगर
Read moreज़िंदगी के सफ़र के सब मुसाफ़िर हैं यहाँ, कौन कब बिछड़ जाए किसे है ख़बर यहाँ! कभी फूलों का सफ़र
Read moreबिकती यहाँ है मानवता भी, सरेशाम बाजारों में बिकते यहाँ कानून के रक्षक, महज चंद हजारों में मिथ्या मे उलझानेवाली
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