फादर्स डे स्पेशल : बाबा का सहारा | शैलेन्द्र ‘उज्जैनी’

न दौलत चाहिए ,न शोहरत चाहिए…. जिनको पकड़कर चलना सीखा था….. फिर उन उँगलियों का सहारा चाहिए… अकेला हो गया

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ग़ज़ल : इस आशिकी को मौत से भी ठान लेने दो | राजीव रंजन झा

  ये दुनिया जानती है तो उसे पहचान लेने दो उसे हक है वो जो माने उसे बस मान लेने

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यूं ही नहीं मेरे शब्दों का जमाना दीवाना है

कोरोना तो महज एक बहाना है, असल मकसद तो कर्मफल चुकाना है। सालों से पिंजरे में कैद थी चिड़िया, अब

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मैं…

मैं …मैं राहगीर हूँ, तो राह भी मैं ही हूँ. मैं श्रमिक हूँ, तो श्रम भी मैं ही हूँ. मैं

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