कम हो रही है धरती के चुम्बकीय क्षेत्र की शक्ति, होंगे ये नुकसान
पिछले कुछ समय से पृथ्वी सतह के अंदर भी काफी बदलाव हो रहे हैं जिनके बारे में वैज्ञानिकों को पता चला है. अब वैज्ञानिकों को एक और बदलाव के बारे में पता चला है जो दो सौ सालों से धीरे धीरे हो रहा था. दरअसल हमारी पृथ्वी की चुंबकीय क्षेत्र की शक्ति कम होती जा रही है.
यह चुंबकीय क्षेत्र हमारे बहुत ही ज्यादा काम का है. आम लोगों को इसका पता नहीं चलता, लेकिन यह हमारी रक्षा करता है. अंतरिक्ष में खास तौर पर सूर्य से आने वाली हानीकारक शक्तिशाली चुंबकीय तरंगे, अति आवेशित कण इसी चुंबकीय क्षेत्र के कारण धरती पर नहीं पहुंच पाते हैं जिनसे हमें काफी नुकसान हो सकता है.
कहां हो रहा है यह कमजोर
यह चुंबकीय क्षेत्र खास तौर पर अफ्रीका से दक्षिण अमेरिका के क्षेत्रों में धीरे धीरे कमजोर हो रहा है. इससे पृथ्वी का चक्कर लगा रहे हमारे सैटेलाइट में कुछ तकनीकी खराब आने लगी है. वैज्ञानिक यूरोपीय स्पेस एजेंसी से हासिल किए गए स्वार्म सैटेलाइट समूह के आंकड़ों का अध्ययन कर रहे हैं और प्रभाव के कारणों को जानने का प्रयास कर रहे हैं. इस प्रभाव को ‘साउथ एटलांटिक एनामोली’ कहा जा रहा है.
कैसे बनता है यह चुंबकीय क्षेत्र
यह चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी की सतह के नीचे की बाह्य क्रोड़ वाली परत में बह रहे गर्म तरल लोहे के कारण बनता है. यह परत हमारी पृथ्वी की सतह के 3 हजार किलोमीटर नीचे है. हाल ही में वैज्ञानिकों ने इस परत में बहुत स्पष्ट बदलाव देखा था. पृथ्वी की क्रोड़ की परतें सतह की तुलना में घूमने लगी हैं. यह पता लगा पाना बड़ी चुनौती है कि वह कौन सी प्रक्रिया है जिसकी वजह से हमारी धरती के अंदर ये बदलाव हो रहे हैं. चुंबकीय क्षेत्र के कमजोर होने से ही हमारे चुंबकीय ध्रुव अपना स्थान बदल रहे हैं. हालांकि ध्रुवों का स्थान बदलना पृथ्वी के लिए कोई नई घटना नहीं है. लेकिन इसके बदलाव का कारण भी वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के अंदर के क्रोड़ की सतहों के घूमने को बताया था.
क्या होगा असर
चुंबकीय क्षेत्र कमजोर होने से अंतरिक्ष से आने वाले आवेशित कण वहां स्थित हमारे उपग्रहों में घुस कर उनके काम पर असर डाल सकते हैं. उपकरणों को खराब कर सकते हैं. अभी यह नहीं कहा जा सकता कि इसका असर कितना व्यापक होगा, लेकिन यह निश्चित है कि सबसे पहले उपग्रहों पर ही इसका असर होगा.