होली स्पेशल कविता : फीके रंग

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शबल सुधीर श्रीवास्तव shabalsudhir@gmail.com

वो रंग हैं कुछ ऐसे,

जो रंग तो जाते हैं मगर रंगीन नहीं कर पाते मुझे.

क्यों दूर हो रहा हूँ मैं उन रंगों से,

जो कभी खिलखिला जाते थे मुझे.

क्या करना था, क्या कर रहा हूँ,

बस भाग रहा हूँ…अपनों से दूर…

ये क्या हो गया है मुझे.

कभी हफ़्तों पहले तैयारियां करता था रंगों की,

अब क्यों सब फीका लगने लगा है मुझे.

लिख कर शब्दों में अपने दर्द को,

खुद को तसल्ली दे रहा हूँ मैं.

ये कैसी जिन्दगी चुन ली,

जिसका कोई इल्म नहीं है मुझे.

बेवजह की तकलीफ ले रहा हूँ मैं,

बस कुछ दिन की बात और है,

ऐसे दिखावे मिल रहे हैं मुझे.

मैं फिर से वही बच्चा बनना चाहता हूँ,

जिससे बेपनाह मोहब्बत है मुझे.

जो चल रहा है उसे चलने दूं ऐसे ही,

कभी न कभी तो लगाएगी,

ये जिन्दगी अपने गले से मुझे.

अब और नहीं सोचूंगा कुछ भी,

ये जो वक़्त मिला है,

बस इसी में खुद को जीना,

सीखना पड़ेगा मुझे.

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