अब पानी से बनेगा बसों का स्वच्छ इंधन

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साफ ईंधन की खोज वैज्ञानिकों को डीजल, पेट्रोल, सीएनजी के बाद अब हाइड्रोजन तक ले आई है. हालांकि हाइड्रोजन से चलने वाली बस डिजायन करना आसान नहीं लेकिन वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को इसमें कामयाबी मिली है. वैज्ञानिक, उद्योग जगत और इंजीनियरों की मिली जुली मेहनत का नतीजा दिखने लगा है. हाइड्रोजन के दो अणु ऑक्सीजन के एक अणु से मिल कर पीने का पानी बनाते हैं. इसी पानी से हाइड्रोजन को अलग कर के उससे ऊर्जा हासिल की जाती है. हाइड्रोजन से ऊर्जा हासिल करने के लिए इसे ऑक्सीजन से अलग करना एक बड़ी और खर्चीली कवायद है, जिसे वैज्ञानिकों ने दशकों की मेहनत के बाद कुछ हद तक कम करने में सफलता पाई है.

बसों को हाइड्रोजन से चलाने के लिए जरूरी है फ्यूल सेल, यानी इसे ऊर्जा देने वाली बैटरी और इसे बनाने में वैज्ञानिकों को खासी मशक्कत करनी पड़ी है. बस को खींचने वाली ऊर्जा दो स्रोतों से आएगी. एक है फ्यूल सेल जो सीधे इलेक्ट्रिक मोटर को बिजली मुहैया कराती है, और दूसरी ऊर्जा बैटरियों से आती है. इन दोनों को इलेक्ट्रॉनिक तरीके से नियंत्रित किया जाता है. जिससे कि ऊर्जा का भरपूर इस्तेमाल हो.

पेट्रोल पम्प की तर्ज पर हाइड्रोजन फ्यूल स्टेशन

इन बसों को ईंधन मुहैया कराने के लिए बैटरी के साथ ही खास स्टेशनों की भी जरूरत होगी, जहां से उन्हें ईंधन मिलेगा. बसों में लगे हाइड्रोजन की टैंक को भरने में करीब 11 मिनट लगते हैं लेकिन यह समय बाहरी मौसम पर भी निर्भर करता है. हाइड्रोजन के फिलिंग स्टेशन के सुरक्षा मानक भी पेट्रोल पंप जैसे ही हैं. एक हाइड्रोजन बस की कीमत में डीजल से चलने वाली छह आम बसें खरीदी जा सकती हैं. इतना ही नहीं इन बसों का रखरखाव भी खर्चीला है. लेकिन फिर भी उम्मीद की जा रही है कि जल्दी ही ये बसें दूसरी बसों की जगह ले लेंगी. जरूरी है कि हाइड्रोजन बस से जुड़ी रिसर्च में पैसा लगाया जाए अगर ऐसा हुआ तो हाइड्रोजन बसें सड़कों पर दौड़ने लगेंगी. शहरों में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के साथ ही जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने की दिशा में यह एक बड़ा कदम साबित हो सकता है.

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