हापुड़ की बेटियों ने जीता अमेरिका में ऑस्कर अवार्ड

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भारत के ग्रामीण क्षेत्र में माहवारी के समय महिलाओं को होने वाली समस्या और पैड की अनुपलब्धता को लेकर बनी एक शॉर्ट फिल्म ‘पीरियड: द एंड ऑफ सेंटेंस’ को ‘डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट सब्जेक्ट श्रेणी में ऑस्कर पुरस्कार मिला है। स्नेहा ने इस फिल्म में अहम किरदार निभाया है। क्षेत्र के गांव काठीखेड़ा निवासी सुमन और स्नेहा को अमेरिका में आस्कर अवॉर्ड मिल गया और गांव में जैसे ही सूचना मिली वैसे ही गांव में हर्ष का माहौल दौड़ गया।

.गांव काठीखेड़ा में स्वच्छ भारत मिशन को लेकर बनाई गई इस फिल्म को ऑस्कर अवॉर्ड के लिए चयिनत करने के बाद सुमन और स्नेहा को अमेरिका में अवार्ड के लिए बुलाया गया। जिसके बाद सोमवार को अवॉर्ड दिया गया और अवार्ड की सूचना जैसे ही गांव काठीखेड़ा में मिली वैसे ही काठीखेड़ा और हापुड़ के लोगों में हर्ष की लहर दौड़ गई। लोगों ने कहा कि स्नेहा और सुमन ने हापुड़ के साथ भारत का नाम रोशन किया है। इसी प्रकार से हापुड़ नई ऊंचाईयों की इबारत लिखेगा।

बता दें कि काठीखेड़ा में मध्यम वर्गीय परिवार की स्नेहा पढ़ लिखकर यूपी पुलिस में जाने की तैयारी कर रही है । गांव की ही एक सुमन गृहणी है। कुछ साल पहले एक एक्शन इंडिया कंपनी ने महिलाओं के मासिक धर्म में इस्तेमाल होने वाले सैनेट्री पैड बनाने का काम शुरू किया। स्नेहा को इसके लिए संपर्क किया गया और उसे मासिक धर्म के बारे में पूछा गया तो वह शरमा गई। उसने कहा वह जानती है मगर इस बारे कुछ बोल नहीं सकती। घर जाकर उसने इस पर विचार किया और फिर फैसला किया कि वह संस्था के साथ काम करेगी। उसने हिम्मत दिखाकर परिवार के लोगों के सामने यह बात रखी। पिता ने उसकी हिम्मत बढ़ाई । मां हिचक रही थी। मगर स्नेहा ने मां उर्मिला को समझाया कि जो पैसे मिलेंगे उससे वह कोचिंग का खर्चा निकाल लेगी। रिश्ते की भाभी सुमन एक्शन इंडिया संस्था के लिए काम करती थी। संस्था गांव में पैड बनाने की मशीन लगाने वाली थी।  इसके बाद स्नेहा ने न केवल खुद काम करना शुरू किया बल्कि अपनी चार सहेलियों को उस काम में लगा लिया। इसके बाद संस्था की हापुड़ कॉर्डिनेटर शबाना के साथ कुछ विदेशी आ गए। उन्होंने बताया कि महिलाओं के मासिक धर्म को लेकर फिल्म बनानी है। स्नेहा ने साहस जुटाया और फिल्म में काम करने के लिए माता-पिता को मना लिया। गांव में फिल्म पीरियड एंड ऑफ सैंटेस की शूटिंग हुई. करीब एक साल बाद पता चला कि फिल्म ऑस्कर के लिए नामित हुई है।इस फिल्म ने दिखा दिया कि गांव-देहात की लड़कियां किसी से कम नहीं हैं।

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