क्यों मनाई जाती है देव दीपावली

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दिवाली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली का पर्व मनाया जाता है. देव दीपावली के दिन काशी में गंगा जी और शिव जी की अराधना की जाती है. माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव धरती पर आते हैं. भगवान भोलेनाथ की नगरी काशी में गंगा तट पर यह पर्व दीपों के साथ बड़े ही धूम धाम के साथ मनाया जाता है. इस दिन बनारस में कुछ अलग सी ही रौनक छाई रहती है. 23 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर वाराणसी में गंगा तट पर यह महान उत्सव मनाया जाएगा. इस दिन काशी में गंगा पूजा के साथ साथ दीपदान और हवन किया जाता है. बहुत से लोग नहीं जानते हैं कि देव दीपावली काशी नगरी यानि बनारस में ही क्‍यों मनाई जाती है.

शिव ने काशी को दिलाई थी त्रिपूर से मुक्‍ति
मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपूर नाम के असुर का वध किया था और इसके आतंक से पूरे काशी को मुक्त कराया था. जिसके बाद से ही देवताओं ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शंकर की महाआरती की और नगर दीपक जलाकर सजाया था.
मान्‍यता है कि देव दीपावली के दिन भगवान विष्‍णु चमुर्मास की निद्रा से जागते हैं और भगवान शिव चतुर्दशी को. इस मौके पर सभी देवी देवता आकाश से आ कर धरती पर उतरते हैं और काशी में दीप जलाते हैं. इसलिए इसे देव दीपावली कहा गया है.

रखें इन खास बातों को ख्‍याल
माता गंगा के निर्मल जल को घर ले लाएं. इस दिन दान का बहुत महत्व है. अन्न दान का तो बहुत ही महत्व है. इस देव दिवाली के दिन एक साथ सभी देवों को प्रसन्न करने का सुअवसर है. जो भी आपका आराध्य देवता है वह यहीं काशी के गंगा तट पर विराजमान है उनका वहीं पूजन कर सकते हैं जिससे उस देवता का आशीर्वाद आपको प्रत्यक्ष मिल जाता है.

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