तुमसे जिन्दगी कलरदार हुई है

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शैलेन्द्र “उज्जैनी” vshailendrakumar@ymail.com

जब से तुम से आँखे चार हुई है,
ज़िदगी तब से गुलज़ार हुई है।
तुझ से मिलकर जीना सीखा है,
बिन तेरे जिन्दगी बेकार हुई है।
तेरे होंठो की लाली से रंगत है दुनिया की,
सूनी थी राहें मेरी,
तुझसे मिलकर कलरदार हुई है।
दिल का मकाँ था खाली-खाली,
अब चहल-पहल है,
जब से वो किराएदार हुई है।
उसकी काली जुल्फें जैसे काली घटाएं हैं,
और चँदा से चेहरे से बरसती चांदनी में,
जिन्दगी चमकदार हुई है।
प्रेम दिवस पर एक गुलाब से क्या होगा,
“उज्जैनी” की जिन्दगी तो तुमसे ही
फूलों का बाज़ार हुई है।

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